अ़ब्दे मुस्तफ़ा : बस एक नाम नहीं पहचान है।
अ़ब्दे मुस्तफ़ा, ये नाम किसी शख्स या किसी तन्ज़ीम के लिये खास नहीं बल्कि हर सुन्नी अ़ब्दे मुस्तफ़ा है।
जिस जिस के आक़ा मुस्तफ़ा करीम हैं वो अ़ब्दे मुस्तफ़ा है।
जैसे सब का खुदा एक है वैसे ही
इनका उनका तुम्हारा हमारा नबी
अ़ब्दे मुस्तफ़ा एक नाम ही नहीं बल्कि हक़ और बातिल के दरमियान एक पहचान है। खुद को अ़ब्दे मुस्तफ़ा कहने से कतराने वाले और इस में शिर्क का पहलू ढूँढने वाले खुद की निशान देही कर देते हैं कि वो किस तरफ हैं।
आप खुद को अ़ब्दे मुस्तफ़ा कहें, अ़ब्दे मुस्तफ़ा लिखें, हर सुन्नी फख्र के साथ कहे कि हाँ मैं हूँ अ़ब्दे मुस्तफ़ा!
देव के बन्दों से हम को क्या गर्ज़
हम हैं अ़ब्दे मुस्तफ़ा फिर तुझ को क्या
जो सिर्फ़ अ़ब्दुल्लाह होने का दावा करते हैं और अ़ब्दे मुस्तफ़ा कहलाने में जिन्हें शिर्क नज़र आता है वो जान लें कि जब तक कोई हुज़ूर ﷺ को अपना मालिक ना माने तब तक वो ईमान की मिठास नहीं पा सकता।
खौफ़ ना रख रज़ा ज़रा, तू तो है अ़ब्दे मुस्तफ़ा
तेरे लिये अमान है, तेरे लिये अमान है
इबादतें ज़रूरी हैं इंकार नहीं पर जब हम अ़ब्दे मुस्तफ़ा हैं तो,
हम रसूलुल्लाह के, जन्नत रसूलुल्लाह की
हम सब अ़ब्दे मुस्तफ़ा हैं, ये नाम हमारा अ़क़ीदा है, ये नाम हमारी पहचान है और ये नाम हमन दूसरों से अलग करता है।
अ़ब्दे मुस्तफ़ा
Post a Comment
Leave Your Precious Comment Here